हेलो दोस्तों इस पोस्ट में सभी का वेलकम है। आज हम इस पोस्ट में छत्तीसगढ़ के भूगर्भिक संरचना (Chhattisgarh Geologic Structure) के बारे में जानेंगे। इसलिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़े चलिए शुरू करते है।
भू-गर्भिक संरचना के आधार पर छत्तीसगढ़ को भौगोलिक रूप से 3 भागों में वर्गीकृत किया गया है-
1) उत्तरी छत्तीसगढ़ का पठारी प्रदेश (पूर्वी बघेलखण्ड का पठार एवं पाट प्रदेश)
2) मध्य छत्तीसगढ़ का मैदानी प्रदेश (छत्तीसगढ़ का मैदान)
3) दक्षिण छत्तीसगढ़ का पहाड़ी प्रदेश (दण्डकारण्य का पठार)
भू-गर्भिक संरचना के आधार पर प्रदेश को निम्न शैल समूहों में वर्गीकृत किया गया है-
आर्कियन शैल समूह ( 50%)
- आद्यमहाकल्प शैल समूह छत्तीसगढ़ के 50% भाग में विस्तृत है।
- यह चट्टान पृथ्वी का सबसे प्राचीन, कठोर एवं गहराई में पाया जाने वाला जीवाश्म रहित चट्टान है।
- इनका उद्भव प्रीकेम्ब्रियन युग में हुआ है जो लावा के ठण्डे होने पर बना है अर्थात् ये चट्टानें आग्नेय तथा अन्य निक्षेपण के द्वारा बनी प्राचीनतम् अवसादी चट्टानें है।
- इस चट्टान के अपरदन से निर्मित मिट्टी मोटे अनाज के उत्पादन हेतु उपर्युक्त होती है।
- आर्कियन शैल समूह में ग्रेनाइट, नीस, क्वार्ट्ज, फैल्सपार, हार्नब्लेड, बायोटाइट आदि पाए जाते है।
वितरण
- पूर्वी बघेलखण्ड का पठार - अम्बिकापुर तहसील
- जशपुर सामरी पाट - सामरी, जशपुर, बगीचा, कुनकुरी, पत्थलगांव।
- छत्तीसगढ़ का मैदान - घरघोड़ा (रायगढ़), पेंड्रा-लोरमी, पंडरिया, कोटा (उत्तर-पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र)
- पूर्वी सीमान्त क्षेत्र - महासमुंद, गरियाबंद, राजिम, धमतरी, कुरूद, डौण्डीलोहारा, बालोद आदि तहसील है।
- दण्डकारण्य का पठार - कांकेर, नारायणपुर, बीजापुर, सुकमा, कोण्डागांव, उत्तर पश्चिमी बस्तर आदि।
धारवाड़ शैल समूह
- धारवाड़ शैल समूह, आद्यमहाकल्प की चट्टानों के अपरदन से निर्मित जीवाश्म रहित चट्टान है।
- कर्नाटक के धारवाड़ जिले के नाम पर इस शैल का नामकरण किया गया है।
- इन परतदार चट्टानों में सर्वाधिक खनिज पाए जाते हैं उसमें टिन, क्वार्ट्ज, अभ्रक व लौह-अयस्क आदि प्रमुख है।
- ये चट्टानें प्रदेश में छोटे-छोटे समूहों में बिखरे हुए है। तीन श्रृंखला निम्नानुसार है-
(i) चिल्फी घाटी श्रृंखला
(ii) सोनाखान श्रृंखला
(iii) लौह-अयस्क श्रृंखला
(i) चिल्फी घाटी श्रृंखला
मुंगेली, कबीरधाम तथा राजनांदगांव के कुछ भाग में इसका विस्तार है। इस श्रृंखला में मैग्नीज अयस्क, सेरीसाइट,
क्वार्ट्जाइट, सिस्ट आदि शैल पाए जाते हैं।
(ii) सोनाखान श्रृंखला
यह श्रृंखला महानदी के दक्षिण भाग में बलौदाबाजार व महासमुंद जिले के कुछ क्षेत्र में अंगुली के आकार में विस्तृत है। इस श्रृंखला में क्वार्टजाइट, कांग्लोमेरेट, स्लेट, क्वार्ट्ज, सिस्ट, क्ले आदि पाए जाते है।
(iii) लौह-अयस्क श्रृंखला
यह श्रृंखला दल्लीराजहरा, रावघाट, बैलाडिला की पहाड़ियों में विस्तृत है जिसमें लौह-अयस्क, क्वार्ट्जइट एवं हेमेटाइट पाया जाता है।
कड़प्पा शैल समूह (30%) -
- धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन से निर्मित कड़प्पा शैल समूह टूटी एवं कायान्तरित चट्टानें है।
- आंध्रप्रदेश के कुड़प्पा जिले के नाम पर इस शैल समूह का नामकरण किया गया है।
- यह मुख्यतः छत्तीसगढ़ के मैदान में पाया जाता है, जिसमें डोलोमाइट एवं चूना पत्थर की प्रधानता है।
- इसके अन्तर्गत प्रदेश में दो श्रृंखला है-
(i) रायपुर श्रृंखला
(ii) चन्द्रपुर श्रृंखला
रायपुर श्रृंखला
रायपुर श्रृंखला का विस्तार दक्षिण बिलासपुर, बेमेतरा, रायपुर, बलौदाबाजार क्षेत्रों में है। यहां प्राप्त होने वाला चूना पत्थर, सीमेंट ग्रेड का है। इसलिए मध्य क्षेत्र में सीमेंट संयंत्र की प्रधानता है।
चन्द्रपुर श्रृंखला
कड़प्पा क्रम का निचला भाग चन्द्रपुर श्रृंखला के अन्तर्गत आता है जो उत्तरी कांकेर से रायगढ़ तक विस्तृत है। इसमें हरा क्लोराइट एवं गुलाबी बैंगनी शैल पाया जाता है।
विंध्यन शैल समूह
विध्यन शैल समूह का निर्माण कड़प्पा चट्टानों के पश्चात् हुआ है, ये जल निक्षेपों के निर्मित परतदार चट्टानें है जिसमें बलुआ पत्थर पाया जाता है।
- इस शैल समूह का नामकरण विंध्याचल पर्वत के नाम पर किया गया है।
- इस शैल समूह को दो भागों में बाँटा गया है-
(i) अपर विंध्यन
(ii) लोअर विंध्यन
अपर विंध्यन - ये शैल समूह नर्मदा नदी के उत्तर में विस्तृत है। अतः छत्तीसगढ़ में ये उपस्थित नहीं पाए जाते हैं।
लोअर विंध्यन - ये शैल समूह सोन नदी घाटी एवं छत्तीसगढ़ के मैदान में अत्यल्प पाए जाते है।
दक्कन ट्रेप
- ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट युक्त लावा का मोटा परत जमने से बना भौतिक स्वरूप दक्कन ट्रेप कहलाता है।
- दक्कन ट्रेप अर्थात् दक्कन प्लेट में सीढ़ीनुमा ढलान के स्वरूप में विस्तृत चट्टान ।
- ये शैल समूह गहरे मटमैले रंग के है। बेसाल्ट के ऋतुक्षरण के कारण दक्कन ट्रेप में काली मिट्टी पायी जाती है।
- इसका विस्तार मैकल श्रेणी के पूर्वी भाग (कवर्धा, उत्तरी सीमान्त, राजनांदगांव तथा जशपुर-सामरी पाट) में है।
- इसमें मुख्य रूप में बॉक्साइट खनिज पाया जाता है।
गोण्डवाना शैल समूह
- विभिन्न प्रकार के वनस्पति एवं जीवों के अवशेषों से तथा ऐतिहासिक भूवैज्ञानिक युग के जलवायु परिवर्तन से बने जीवाश्म युक्त चट्टान को गोण्डवाना कहते है।
- इस चट्टान में मुख्य रूप से कोयले की प्राप्ति होती है।
विन्यास व गुण के आधार पर गोण्डवाना शैल समूह को तीन भिन्न-भिन्न भागों में बांटा गया है-
(i) अपर गोण्डवाना
(iii) मध्य गोण्डवाना
(iii) लोअर गोण्डवाना
अपर गोण्डवाना
अपर गोण्डवाना उत्तरी सीमान्त बघेलखण्ड के जनकपुर, महेन्द्रपुर, प्रतापपुर, बैकुण्ठपुर, सूरजपुर आदि तहसीलों में पाया जाता है। जिसमें मुख्य रूप से बालू का पत्थर एवं शैल (कांग्लोमरेट व क्वार्टजाईट) मिलते है। इस क्षेत्र में कोयले की मोटी तह विस्तृत है।
मध्य गोण्डवाना
मध्य गोण्डवाना शैल का विकास छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से नहीं हो पाया है, किन्तु इसकी कुछ मात्रा सोन एवं महानदी क्षेत्र में पायी जाती है जिसे परसोरा एवं टिकी नाम से जाना जाता है। इन शैल समूहों को इनमें प्राप्त जीव अवशेषों में भिन्नता के आधार पर अलग किया जा सकता है।
लोअर गोण्डवाना
यह शैल समूह अपर गोण्डवाना के निचले भाग, दक्षिणी मनेन्द्रगढ़, दक्षिणी सरगुजा, कोरबा, कटघोरा, खरसिया, रायगढ, ६ रमजयगढ़ में विस्तृत है।
- ये शैल समूह शैलग्रिट (कोमल, सफेद व संगठित बालू पत्थर) एवं कोयले की परतों से निर्मित है।
- इन्हें तलचर, बराकर एवं कामठी श्रेणी में रखा गया है।
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