छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक विभाजन (Natural Division of Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ क्षेत्र के प्राकृतिक विभाजन में उत्तरी भाग में पहाड़ी विक्षोभ हैं जो विश्व प्रसिद्ध वनों, वनों एवं जलवायु प्रदेशों की विविध प्रजातियों के वनों से परिपूर्ण हैं। दक्षिणी भाग में समुद्री क्षेत्र और घाटियों में विकृति आती है।

Natural Division of Chhattisgarh

भारत के लगभग मध्यवर्ती भाग में स्थित छत्तीसगढ़ विविध भौगोलिक स्थिति वाला क्षेत्र है। पर्वतमालाएँ एवं पठार विस्तृत उपजाऊ मैदान को घेरे हुए हैं। उत्तर से दक्षिण की ओर छत्तीसगढ़ को 4 प्राकृतिक भागों में बाँटा गया है-

1) पूर्वी बघेलखण्ड का पठार (16.16% )

2) जशपुर पाट प्रदेश (4.59% )

3) महानदी बेसिन (50.34% )

4) दण्डकारण्य का पठार (28.91% )


पूर्वी बघेलखण्ड का पठार (Plateau Eastern Baghelkhand)

पश्चिम में शहडोल एवं डिंडोरी जिले से लेकर पूर्व में छोटा नागपुर के पठार तक तथा उत्तर में सोननदी से लेकर दक्षिण में मैकल श्रेणी व महानदी बेसिन तक (46200 km क्षेत्र में फैला कंटा-फटा पहाड़ी प्रदेश "बघेलखण्ड का पठार" कहलाता है। चूंकि बघेलखण्ड पठार का पूर्वी हिस्सा छत्तीसगढ़ के अन्तर्गत आता है, इसलिए छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग को पूर्वी बघेलखण्ड का पठार कहा जाता है।

पूर्वी बघेलखण्ड के पठार का 47.32% भाग छत्तीसगढ़ में विस्तारित है। इस पठार में अनेक उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है, जिसमें स्पष्टतः तीन सतहें हैं-

1) देवगढ़ की पहाड़ियाँ - 1033 मी.

2) सोनहट का पठार - 755 मी.

3) सरगुजा कछार (बेसिन) - 755 मी.


विस्तार - 

  • 23°40' से 24°8' उत्तरी अक्षांश
  • 80°5' सें 8123' पूर्वी देशान्तर


सम्मिलित जिले:- 

  • कोरिया
  • सूरजपुर
  • बलरामपुर (सामरी पाट, जमीर पाट के अतिरिक्त)
  • सरगुजा (मैनपाट, जारंगपाट के अतिरिक्त)


 भौतिक सरंचना के आधार पर पूर्वी बघेलखण्ड के पठार को निम्न भागों में बांटा गया है-

1) कन्हार कछार (बेसिन)

2) रिहन्द कछार (बेसिन)

3) चांगभखार- देवगढ़ की पहाड़ियाँ

4) सरगुजा बेसिन

5) हसदो-रामपुर बेसिन


 कन्हार बेसिन

कन्हार बेसिन का निर्माण कन्हार नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा हुआ है। कन्हार नदी जशपुर जिले के बगीचा तहसील में स्थित पंडरापाट के बखोना चोटी से निकलती है। यह बेसिन छत्तीसगढ़ के सबसे उत्तरी सीमान्त क्षेत्र में स्थित है तथा उत्तर-पूर्वी सरगुजा से रामानुजगंज तहसील तक विस्तृत है।


रिहन्द बेसिन

रिहन्द बेसिन, रिहन्द एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित है। यह देवगढ़ की पहाड़ी के उत्तर में तथा कन्हार बेसिन के पश्चिम में वाड्रफनगर तहसील के अन्तर्गत स्थित है। रिहन्द नदी छुरी मतिरिंगा (सरगुजा) की पहाड़ी से निकलकर सूरजपुर में प्रवेश करती है। उसके पश्चात् देवगढ़ की पहाड़ी एवं सरगुजा बेसिन को कांटते हुए बलरामपुर के कुछ भाग में प्रवाहित होकर उत्तर प्रदेश में सोन नदी से मिल जाती है। रिहन्द बेसिन को सिंगरौली बेसिन भी कहा जाता है।

चांगभखार-देवगढ़ की पहाड़ियाँ

चांगभखार व देवगढ़ की पहाड़ी विंध्यन पर्वत श्रेणी का भाग है। यह कोरिया, सूरजपुर, उत्तरी सरगुजा एवं दक्षिणी बलरामपुर जिले में विस्तृत है। यह छत्तीसगढ़ के सबसे ऊंचे भागों में से एक है। देवगढ़ की सबसे ऊंची चोटी लीलावनी- 1033 मी. है। इसके उत्तर में गोपद एवं रिहन्द नदी के जलद्विभाजक पर देवसर की पहाड़ी है। देवगढ़ एवं मैकल श्रेणी के मध्य सोहागपुर बेसिन है, जो उत्तर–पश्चिम में स्थित मुड़वारा बेसिन से छत्तीसगढ़ को जोड़ता है। इस अंचल का ढाल उत्तर की ओर है, जिसके कारण यहां की नदियाँ गोपद, बनास, रिहन्द व कन्हार इस क्षेत्र का सारा जल उत्तर की ओर प्रवाहित कर सोन नदी में डाल देती है।


सरगुजा बेसिन

सरगुजा बेसिन उत्तर में देवगढ़ की पहाड़ियों से तथा दक्षिण में छुरी–मतिरिंगा की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह पूर्वी बघेलखण्ड के पठार का सबसे बड़ा भाग है। इस क्षेत्र में रामगढ़ की पहाड़ी स्थित है तथा पश्चिम में सोनहट का पठार विस्तृत है। रामगढ़ की पहाड़ी सतपुड़ा पर्वत श्रेणी का भाग है। इसी पहाड़ी में महाकवि कालिदास ने "मेघदूत' की रचना की थी जिसका छत्तीसगढ़ी भाषा में रूपांतरण प्रसिद्ध साहित्यकार मुकुटधर पाण्डेय जी ने किया था।


हसदो-रामपुर बेसिन

यह प्राकृतिक विभाजन का दक्षिणतम भाग है। इसका विस्तार दक्षिणी मनेन्द्रगढ़, पूर्वी पेंड्रा तथा उत्तरी कटघोरा तक है। इस क्षेत्र में क्रमबद्ध रूप से अनेक जलप्रपात हैं। हसदेव नदी कैमूर–सोनहट के पठार से निकलकर हसदो रामपुर बेसिन व कोरबा बेसिन की गोंडवाना चट्टानों को काटकर घाटी का निर्माण करते हुए सिलादेही (जाँजगीर-चांपा) नामक स्थान पर महानदी में मिल जाती है। हसदो रामपुर बेसिन देवगढ़ की पहाड़ी, पेण्ड्रा-लोरमी का पठार, सरगुजा बेसिन, कोरबा बेसिन व छुरी–उदयपुर की पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

  •  रामगढ़ की पहाड़ी में सीताबेंगरा, जोगीमारा व लक्ष्मण बेंगरा गुफा स्थित है।


1. सीताबेंगेरा– 200 ई.पू. में भरतमुनि ने अपनी नाट्यशाला की रचना की थी। यहां विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला के साक्ष्य मिले है।

2. जोगीमारा - इस गुफा में नर्तक देवदत्त तथा देवदासी नृत्यांगना की प्रेमगाथा मौर्यकालीन सम्राट अशोक के लेख प्राप्त हुए हैं। जिसकी भाषा-पाली व लिपि ब्राम्ही है।

  • औसत ऊँचाई - 300-700 मी.
  • ढाल – उत्तर की ओर


अपवाह तंत्र

पूर्वी बघेलखण्ड का पठार गंगा एवं महानदी के जलद्विभाजक का दक्षिणी भाग है। सोन अपनी सहायक नदियों को लेकर (बनास, गोपद, रिहन्द, कन्हार) पटना (बिहार) में गंगा नदी से मिल जाती है अर्थात् यह प्रदेश गंगा अपवाह क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। इसके अतिरिक्त हसदेव नदी पठार के दक्षिणी हिस्से का जल लेकर महानदी में मिल जाती है।


भूगर्भिक संरचना

बघेलखण्ड भूखण्ड आद्यमहाकल्प एवं गोंडवाना शैल समूह से मिलकर बना है। भूखण्ड के उत्तर में पूर्व से पश्चिम तक बलरामपुर, सूरजपुर, तथा कोरिया में अपर गोंण्डवाना विस्तृत है जिसमें बलुआ पत्थर एवं शैल मिलते है। इस शैल समूह की पट्टी से संलग्न निचले भाग में लोअर गोंण्डवाना शैल प्राप्त होता है, जो कि दक्षिणी कोरिया एवं दक्षिण सूरजपुर में विस्तृत है। इन दोनो शैल समूहों में कोयला प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त सरगुजा के कुछ क्षेत्र में आद्यमहाकल्प शैल समूह पाए जाते है, जिसमें ग्रेनाइट, नीस आदि चट्टानें प्राप्त होती हैं।


मिट्टी

पठार का लगभग आधा भाग वनाच्छादित है, इस क्षेत्र में मुख्यतः लाल-पीली मिट्टी पाई जाती है जो कि धान एवं मोटे अनाज की फसल के लिए उपयुक्त है।


जलवायु

चूंकि कर्क रेखा इस क्षेत्र के बीच से होकर गुजरती है एवं इस क्षेत्र में वनों की अधिकता है इसलिए यहां की जलवायु शुष्क मानसूनी है। यहां गर्मियों में औसत तापमान 35°C तथा सर्दियों में न्यूनतम 10°C होता है अर्थात् गर्मी उष्णार्द्र एवं शीत ऋतु सामान्य व शुष्क है।

  • इस क्षेत्र में औसत वर्षा 125-150 से.मी. तक होता है।
  • यहाँ उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते है।

जशपुर पाट प्रदेश (Jashpur Pat Region) 

यह छत्तीसगढ़ का सबसे छोटा एवं सबसे ऊँचा प्रदेश है, जो कि राज्य के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है। पाट एक उच्च समतलीय व पठारी स्थलाकृति है जिसका शीर्ष सपाट तथा किनारा सोपान के साथ तीव्र ढालदार होता है अर्थात् इस प्रदेश का धरातल सीढ़ीनुमा ढाल के साथ उच्च में समतिया  होता है। यह पाट प्रदेश छोटा सागर का पठार का भाग है । 

  • छोटा नागपुर का क्षेत्रफल - 65,509km2
  • विस्तार ज्यादातर हिस्सा झारखण्ड तथा कुछ हिस्से उड़ीसा, बिहार एवं छत्तीसगढ़ में विस्तृत हैं।

सम्मिलित जिले

विस्तार - 22°18 से 23°40' उत्तरी अक्षांश 83°2' से 84°20' पूर्वी देशान्तर तक
औसत ऊँचाई - 700-1000 मी.
ढाल – पूर्व से दक्षिण की ओर

यह पाट प्रदेश पूर्व में छोटा नागपुर का पठार, पश्चिम में बघेलखण्ड का पठार एवं दक्षिण-पश्चिम में महानदी बेसिन से घिरा है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्र आते है-

1) सामरी पाट (बलरामपुर)
2) जमीर पाट (बलरामपुर)
3) पंडरा पाट (जशपुर)
4) जशपुर पाट (जशपुर)
5) जारंग पाट (सरगुजा)
6) मैनपाट (सरगुजा)

1) सामरी पाट -

सामरी पाट बलरामपुर जिले के कुसमी तहसील में विस्तृत है। यह क्षेत्र झारखण्ड से लगा हुआ छत्तीसगढ़ का सीमान्त क्षेत्र है। सामरी पाट की सबसे ऊँची चोटी गौरलाटा (1225 मी.) है जो कि छत्तीसगढ़ का उच्चतम् शिखर है। सामरी पाट का पश्चिमी भाग लहसून पाट कहलाता है।

2) जमीर पाट

यह सामरीपाट के पूर्व में स्थित है। जमीरपाट में बॉक्साइट प्रचुर मात्रा में मिलता है इसलिए इसे 'बॉक्साइट का मैदान' कहा जाता है।

3) पंडरापाट

पंडरापाट, जशपुर जिले के बगीचा तहसील में स्थित है। पंडरापाट के खुरिया पहाड़ से कन्हार नदी एवं रानीझूला उच्च भूमि से ईब नदी निकलती है। ईब नदी दक्षिण-पूर्व दिशा में बहते हुए उड़ीसा राज्य में प्रवेश कर महानदी में मिल जाती है। खुड़िया पहाड़ में बॉक्साइट पाया जाता है।

4) जशपुर पाट

जशपुर पाट, इस संपूर्ण प्राकृतिक विभाजन का सबसे बड़ा एवं लम्बा पाट प्रदेश है। पंडरापाट के अतिरिक्त यह लगभग संपूर्ण जशपुर जिले में विस्तृत है। इसकी ऊँचाई लगभग 900 मी. है किन्तु शिखर 1000 मी. से भी ऊंचे है। जैसे- भँवर पहाड़, तेंदू पाट आदि।

5) जारंग पाट

जारंग पाट सरगुजा जिले के उत्तरी सीतापुर से लेकर लुण्ड्रा तहसील तक फैला है। इसकी अधिकतम ऊँचाई 1145 में है। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक "बॉक्साइट का भण्डार' जारंग पाट में है।

6) मैनपाट

छत्तीसगढ़ के सबसे ठण्डे क्षेत्रों में से एक मैनपाट, सरगुजा जिले के दक्षिणी अम्बिकापुर तथा सीतापुर तहसील के कुछ भाग तक विस्तृत है। यह 29 मीटर चौड़ा तथा अधिकतम 1152 मी. तक ऊँचा है। मांड नदी मैनपाट से निकलती है तथा इस क्षेत्र पर सरभंजा जलप्रपात का निर्माण करते हुए जांजगीर-चांपा के चन्द्रपुर नामक स्थल पर महानदी से मिल जाती है।

मैनपाट में 1962 ई. में तिब्बती शरणार्थी आकर बसे थे। इस क्षेत्र में टाइगर प्वाइंट, इको प्वाइंट एवं मछली प्वाइंट आदि हिल स्टेशन एवं भूकम्पित जलजली क्षेत्र स्थित है। 

भू-गर्भिक संरचना

ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट युक्त लावा के जमने से निर्मित दक्कन ट्रेप से इस प्रदेश की संरचना हुई है। यहां बॉक्साइट खनिज की प्रचुरता है।


मिट्टी

इस क्षेत्र में लेटेराइट मिट्टी पाई जाती है, जिसमें आयरन एवं एल्युमीनियम के ऑक्साइड पाए जाते है। इस मिट्टी का उपजाऊ परत बहाव एवं निक्षालन से खत्म हो जाता है, अतः यह कृषि कार्य के लिए अनुपयुक्त होती है तथा इसका उपयोग गृह निर्माण हेतु किया जाता है।

जलवायु

समूचा प्रदेश अत्यंत दुर्गम एवं वनों से आच्छादित है। यहां औसत वार्षिक वर्षा सर्वाधिक 172 सेमी. तक होती है। यहां की जलवायु उष्णकटिबन्धीय मानसूनी है जहाँ औसत तापमान ग्रीष्म काल में 32°C तथा शीतकाल में 17°C तक रहता है। इस भाग में उष्ण आर्द्र पर्णपाती वन मिलते हैं।

अपवाह तंत्र

इस प्रदेश की मुख्य नदियाँ, कन्हार (सोन की शाखा), शंख (ब्राम्हणी नदी शाखा) ईब व माण्ड (महानदी की शाखा) है। अधिकतर नदियाँ पूर्व से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है।

छत्तीसगढ़ का मैदान (Plane area of Chhattisgarh) 


महानदी का तटीय उपजाऊ क्षेत्र छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग के अन्तर्गत आता है। उत्तर में बघेलखण्ड पठार, पश्चिम में मेकल श्रेणी, दक्षिण में दण्डकारण्य का पठार एवं पूर्व में लघु पर्वत से घिरा हुआ समतल क्षेत्र पंखे की आकृति के समान है। इस भू-भाग को छत्तीसगढ़ का हृदय स्थल कहा जाता है। इस प्रदेश की धरातलीय संरचना मध्य में मैदानी भाग होने के कारण समतल तथा पूर्वी व पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र उच्चावच है, जिसके कारण पृष्ठीय भूमि "कटोरे" के समान दिखाई पड़ता है।

सम्मिलित जिले:-

1) कोरबा
2) रायगढ़
3) बिलासपुर
4) मुंगेली
(5) जांजगीर-चांपा
6)कवर्धा
7)बेमेतरा
8)बलौदाबाजार
9) रायपुर
10) दुर्ग
(11) महासमुन्द
12) राजनांदगांव (मोहला के अतिरिक्त)
(13) बालोद
14) धमतरी
15) गरियाबंद
16) गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही 

विस्तार

  • 19°47' से 2307' उत्तरी अक्षांश
  • 83°17' से 83°52' पूर्वी देशान्तर

औसत ऊँचाई – मैदान की औसत ऊँचाई 220 मीटर तथा सीमान्त उच्चभूमि की औसत ऊँचाई 330 मीटर। 

ढाल - पूर्व की ओर 

मध्य में छत्तीसगढ़ का मैदान 31,600 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत है तथा यह मैदानी क्षेत्र किनारे में उच्च भूमि व उच्चावच से घिरा है जो 3,60,464 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर विस्तृत है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ बेसिन को दो स्थालाकृतिक प्रक्षेत्रों में बाँटा गया है-

महानदी बेसिन

मैदानी भाग (31,600 वर्ग कि.मी.)

  • पेंड्रा -लोरमी का पठार
  • कोरबा बेसिन
  • रायगढ़ बेसिन
  • बिलासपुर-रायगढ़ का मैदान
  • दुर्ग-रायपुर का मैदान

सीमान्त उच्च भूमि (3,60,464 वर्ग कि.मी.)

  • छुरी-उदयपुर की पहाड़ियाँ
  • मैकल श्रेणी
  • दुर्ग–सीमान्त उच्च भूमि
  • धमतरी–महासमुन्द उच्च भूमि

1) पेंड्रा-लोरमी का पठार

पेंड्रा-लोरमी का पठार छत्तीसगढ़ के उत्तर-पश्चिम में लोरमी (मुंगेली), पेंड्रा (बिलासपुर) तथा कटघोरा (कोरबा) तहसील तक विस्तृत है। इस पठार की औसत ऊँचाई 800 मी. है। इस पठार की दो प्रमुख चोटी है-

  •  पलमा चोटी - बिलासपुर (1080 मी.)
  •  लाफागढ़ चोटी - कोरबा (1048 मी.)

2) कोरबा बेसिन

कोरबा बेसिन, कोरबा जिले के दक्षिणी क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र की मुख्य नदी महानदी की सहायक नदी हसदेव है तथा इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई 250-300 मी. है।

3) रायगढ़ बेसिन

रायगढ़ बेसिन, रायगढ़ जिले के उत्तर-पश्चिम में तथा कोरबा जिले के पूर्वी सीमान्त क्षेत्र तक विस्तृत है। इस क्षेत्र की मुख्य नदी केलो है तथा इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई 300 मी. है।

4) बिलासपुर-रायगढ़ का मैदान

राज्य के मध्यभाग में स्थित यह मैदान मुंगेली तहसील से लेकर रायगढ़ तहसील तक विस्तृत है। इसकी औसत ऊँचाई 150- 300 मी. है। अकलतरा में स्थित दलहापहाड़ की ऊँचाई 760 मी. है।

5) दुर्ग-रायपुर का मैदान

राज्य के पश्चिम में स्थित यह मैदान पूर्वी राजनांदगांव, दक्षिणी कबीरधाम, दुर्ग, रायपुर तथा उत्तरी धमतरी (कुरूद तहसील) तक विस्तृत है। इस समतल मैदान की औसत ऊँचाई 300 मी. है।

6) छुरी- उदयपुर की पहाड़ियाँ

छुरी उदयपुर की पहाड़ी छुरी से लेकर उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व रायगढ़ के धरमजयगढ़ तहसील तक (तत्कालीन उदयपुर रियासत) विस्तृत है। इसकी औसत ऊँचाई 600-900 मी. है।

7) मैकल श्रेणी

राज्य के पश्चिम सीमान्त क्षेत्र में राजनांदगांव से लेकर मुंगेली तक विस्तृत है। मैकल श्रेणी, सतपुड़ा पर्वतमाला के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी बदरगढ़ (1176 मी.) कवर्धा जिले में स्थित है। मैकल से लगे क्षेत्र वृष्टि छाया भू-भाग (rain shadow area) के अन्तर्गत आते हैं, इसलिए कबीरधाम जिले में औसत वर्षा न्यूनतम हैं।


8) दुर्ग-सीमान्त उच्च भूमि

यह उच्च भूमि अबागढ़ चौकी (राजनांदगांव), दक्षिणी दुर्ग तथा बालोद जिले में विस्तृत हैं। इसकी औसत ऊँचाई 500-800 मी. है। इस क्षेत्र की ऊँची चोटियां डोंगरगढ़, राजनांदगांव (704 मी.) व दल्लीराजहरा बालोद (700 मी.) हैं।

9) धमतरी-महासमुन्द उच्च भूमि

यह उच्चभूमि उत्तरी धमतरी से लेकर उत्तरी गरियाबंद व महासमुन्द जिले में विस्तृत है। इसकी औसत ऊँचाई 400-900 मी. है। महासमुन्द जिले में विस्तृत शिशुपाल पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी धारीडोंगरी (899 मी.) महासमुन्द है।

भू-गर्भिक संरचना


यह क्षेत्र ग्रेनाइट चट्टानों के अपरदन से निर्मित कड़प्पा शैल समूह से निर्मित है। यहां चूना पत्थर एवं डोलोमाइट खनिज प्रचुर मात्रा में उपस्थित है।

मिट्टी

इस क्षेत्र में उपजाऊ भूमि में लाल-पीली मिट्टी व काली मिट्टी पायी जाती है। यहां मुख्य रूप से धान, चना सोयाबीन, आदि फसल बोए जाते है। यह क्षेत्र प्राकृतिक विभाजन का सबसे बड़ा भू-भाग है जहां सबसे ज्यादा सिंचाई के साधन होने के साथ-साथ कृषि उत्पादन भी सर्वाधिक होता है। इस क्षेत्र में सर्वाधिक जनसंख्या, जनसंख्या घनत्व, साक्षरता व औद्योगिकीकरण हुआ है।

अपवाह तंत्र

इस मैदानी उपजाऊ क्षेत्र की प्रमुख नदी महानदी एवं उसकी सहायक नदियाँ (ईब, माण्ड, केलो, बोरई, हसदेव, शिवनाथ, पैरी, सोंदुर जोंक व लात आदि) है। इसके अतिरिक्त ताड़ा एवं बंजर नदी कबीरधाम जिले से निकलकर नर्मदा में प्रवाहित हो जाती है।

जलवायु

यहाँ की जल कि उष्णकटिबंधीय मानसूनी है। यहां औसत तापमान ग्रीष्मकाल में 40°C-45°C तथा शीतकाल में 20°C तक होता है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 117.5 से.मी. से अधिक है किन्तु कबीरधाम में न्यूनतम वर्षा होती है।

दण्डकारण्य का पठार (Plateau of Dandkaranva) 


विंध्याचल पर्वत से गोदावरी तक (छत्तीसगढ़, ओड़िशा, आंध्रप्रदेश) विस्तृत दण्डकारण्य वन छत्तीसगढ़ में 39,060 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में विस्तृत है, जिसके पूर्व में बस्तर का पठार, पश्चिम में अबूझमाड़ की पहाड़ी तथा निचला भाग मैदानी है। राज्य का यह दक्षिणी प्राकृतिक प्रदेश जनजाति बाहुल्य, वनाच्छादित तथा खनिज संसाधन से सम्पन्न है। 

सम्मिलित जिले- बस्तर संभाग [कांकेर, कोण्डागांव, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, नारायणपुर, बीजापुर, मोहला (राजनांदगांव)
विस्तार -17°46' से 20°34' उत्तरी अक्षांश 80°18' से 82°15' पूर्वी देशान्तर
ढाल- पश्चिम से दक्षिण


औसत ऊँचाई- 600 मी.

छत्तीसगढ़ मैदान के दक्षिण में स्थित इस पठारी प्रदेश को मुख्यतः चार भागों में विभाजित किया गया है-

1) कोटरी बेसिन
2) अबूझमाड़ क्षेत्र
3) बस्तर का पठार
4) बीजापुर का मैदान

1) कोटरी बेसिन

इन्द्रावती की सहायक नदी कोटरी नदी द्वारा निर्मित यह क्षेत्र मोहला (राजनांदगांव) से लेकर पखांजुर व भानुप्रतापपुर (कांकेर) तहसील तक विस्तृत है। इसकी औसत ऊँचाई 300-450 मी. है।

2) अबूझमाड़ क्षेत्र

राज्य के दक्षिण-पश्चिम में विस्तृत अबूझमाड़ की ऊँची पहाड़ियाँ नारायणपुर एवं दक्षिण कांकेर के अन्तर्गत आता है। अबूझमाड़ पहाड़ की औसत ऊँचाई 600-900 मी. है। जबकि इसकी अधिकतम ऊँचाई 1076 मी. है। यह क्षेत्र सर्वोच्च किस्म के सागौन वनों से वनाच्छादित है तथा यहां सर्वाधिक (187.5 cm) वर्षा होने के कारण इसे "छत्तीसगढ़ का चेरापूंजी" कहते है।

3) बस्तर का पठार (उत्तर-पूर्वी पठार)

यह पठारी क्षेत्र दण्डकारण्य के उत्तर-पूर्वी भाग के बस्तर, उत्तरी सुकमा एवं दंतेवाड़ा में विस्तृत है। इसकी औसत ऊँचाई 450- 750 मी. है। इस पठारी क्षेत्र के उत्तर में केशकाल घाटी (कोण्डागांव) तथा पश्चिम में बैलाडीला की पहाड़ी (दंतेवाड़ा) स्थित है।

बैलाडीला पहाड़ी

यह पहाड़ी धारवाड़ चट्टानों से निर्मित है, जिसमें सर्वोच्च किस्म का लौह-अयस्क प्राप्त होता है। इस क्षेत्र से प्राप्त लौह-अयस्क को विशाखापट्टनम बंदरगाह से जापान भेजा जाता है। इस पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी नंदीराज (1210 मी.) है।

केशकाल घाटी (कोण्डागांव)

यह घाटी उत्तर में महानदी अपवाह तंत्र तथा दक्षिण में इंद्रावती अपवाह तंत्र के लिए जलविभाजक का कार्य करता है। इस घाटी में 12 मोड़ है तथा इसे 'बस्तर का प्रवेश द्वार कहा जाता है।

4) बीजापुर का मैदान (गोदावरी-शबरी का मैदान)

यह पठार का दक्षिणी सीमान्त भाग है जो कि बीजापुर व सुकमा के दक्षिणी क्षेत्र में विस्तृत है।

अपवाह तंत्र

सम्पूर्ण दण्डकारण्य गोदावरी अपवाह तंत्र का भाग है। गोदावरी की सहायक नदी ओड़िशा के कालाहाण्डी जिले से निकलकर छत्तीसगढ़ में पूर्व से पश्चिम दिशा में प्रवाहित होते हुए अपनी सहायक नदियों (कोटरी, निबरा, नारंगी आदि) का जल लेकर अन्ततः गोदावरी में मिल जाती है।

भूगर्भिक संरचना

दण्डकारण्य का उत्तरी भाग आद्यमहाकल्प शैल समूह से बना है, इन चट्टानों में ग्रेनाइट, नीस प्राप्त होता है जिसका विस्तार कांकेर, कोण्डागांव, नारायणपुर, बीजापुर तथा उत्तरी बस्तर में है। बस्तर का पठार इन्ही ग्रेनाइट, नीस चट्टानों से निर्मित है। दंतेवाड़ा में धारवाड़ शैल समूह की पहाड़ियां हैं जिनमें लोहे के विशाल संचित भण्डार हैं। केशकाल घाटी के ऊँचे पठार कड़प्पा एवं विध्यन शैल समूह से निर्मित है। ये शैल ग्रेनाइट चट्टानों के अपरदन से बने है।

मिट्टी

इस पठारी एवं पहाड़ी क्षेत्र का 52.47% भाग वनों से आच्छादित है। इस क्षेत्र में लाल-रेतीली मिट्टी मिलती है, किन्तु रेत की मात्रा अधिक होने के कारण इसकी उर्वरता कम होती है। दक्षिणी दंतेवाड़ा एवं सुकमा के कुछ क्षेत्र में लाल-दोमट मिट्टी पायी जाती है। इस प्रकार इस क्षेत्र के कुछ भाग में ही कृषि की जाती है।

जलवायु

दण्डकारण्य का जलवायु मानसूनी है। यहां शीतकाल में औसत तापमान 19'c  तथा ग्रीष्म काल में औसत तापमान 31'c  तक होता है।

Final Word 

इस पोस्ट में, हमने आपके साथ छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक विभाजन (Natural Division of Chhattisgarh) से संबंधित जानकारी साझा की है, कि आपको यह छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक विभाजन (Natural Division of Chhattisgarh) पसंद आएगी। इस पोस्ट  को पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो कृपया हमें कमेंट सेक्शन में बताये। यदि आप और लेख पढ़ना चाहते हैं तो कृपया हमारे और लेखों पर जाएँ और हमारे साथ बने रहें।


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