पंचायती राज सम्बन्धी विभिन्न समितियाँ | Various committees related to Panchayati Raj

पंचायती राज सम्बन्धी विभिन्न समितियाँ

पंचायती राज सम्बन्धी विभिन्न समितियों का विवरण निम्न प्रकार है

पंचायती राज सम्बन्धी विभिन्न समितियाँ

बलवन्त राय मेहता समिति (1957) Balwant Rai Mehta Committee (1957)

सामुदायिक विकास कार्यक्रम (community development program)वर्ष 1952 तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम वर्ष 1953 की असफलता की जाँच करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1957 में

Balwant Rai Mehta की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1957 में ही सरकार को सौंप दी। इस समिति ने जनतान्त्रिक जिसे विकेन्द्रीकरण (Democratic Decentralisation) की सिफारिश की,

Panchayati Raj कहा गया। रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु निम्नवत् हैं

  • त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली (Three Tier Panchayati Raj System) की स्थापना की जाए। 
1. ग्राम पंचायत
2. पंचायत समिति
3. जिला पंचायत
  • (तीनों को एक-दूसरे से (Indirect Election) अप्रत्यक्ष चुनाव  के माध्यम से जोड़ा जाए।)
  • ग्राम Panchayat का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से तथा पंचायत समिति (Panchayat committee) और जिला Panchayati का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से हो।
  • विकास व नियोजन (development and planning) से जुड़े सभी कार्यों को इन संस्थाओं को हस्तान्तरित (transferred) किया जाए।
  • Panchayat समिति को कार्यकारी निकाय (Executive Board) तथा जिला पंचायत को पर्यवेक्षी, समन्वयात्मक तथा सलाहकारी निकाय (Advisory Board) बनाया जाए।
  • जिला कलेक्टर को जिला Panchayat का अध्यक्ष बनाया जाए।
  • विकास कार्य (development work) करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन (Financial Resources) उपलब्ध कराए जाएँ।
  • Balwant Rai Mehta समिति की प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण (Decentralisation) की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सर्वप्रथम आन्ध्र प्रदेश में अगस्त, 1958 में राज्य के कुछ भागों में लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण (democratic decentralization) को लागू किया गया।
  • अतः समिति की सिफारिशों को वर्ष 1958 में स्वीकार कर लिया गया, तहत सर्वप्रथम पंचायती राज व्यवस्था का शुभारम्भ भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी (Pandit Jawaharlal Nehru) द्वारा राजस्थान के नागौर जिले से 2 october, 1959 को हुआ।
  • इसके बाद कई राज्यों ने अपने यहाँ इस प्रणाली (system) का शुभारम्भ किया।

Ashok Mehta Committee (1977-78) अशोक मेहता समिति (1977-78) 

Panchayati राज संस्थाओं के सम्बन्ध में वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1978 में सरकार को सौंप दी। इस समिति ने निम्न सिफारिशें सरकार को सौंपी

  • त्रिस्तरीय प्रणाली (three tier system) को समाप्त कर द्विस्तरीय प्रणाली (two tier system) अपनाई जाए, 15000-20000 की जनसंख्या पर मण्डल पंचायत का गठन किया जाए तथा ग्राम पंचायत को समाप्त किया जाए।
  •  जिले को विकेन्द्रीकरण (decentralization) का प्रथम स्तर माना जाए। 
  • Panchayat चुनाव राजनीतिक दल के आधार पर होने चाहिए। 
  • जिला स्तर के नियोजन (planning) के लिए जिले को ही जवाबदेही (Accountable) बनाया जाए तथा जिला परिषद् (Zilla Parishad) एक कार्यकारी निकाय हो ।
  • पंचायतों को कर लगाने की शक्ति प्राप्त हो, जिससे वित्तीय संसाधनों (financial resources) को जुटाया जा सके।
  • जिला स्तर की एजेन्सी (agency) से पंचायतों के लेखों की संपरीक्षा (Audit) होनी चाहिए।
  • न्याय पंचायतों को पंचायतों से अलग रखा जाए, जिसका प्रमुख न्यायाधीश (judge) हो ।
  • राज्य पंचायतों का अतिक्रमण (violation) न करे, अगर करे, तो 6 माह के अन्दर चुनाव कराए।
  • भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह पर राज्य के मुख्य चुनाव (Election) आयुक्त को चुनाव करवाने की जिम्मेदारी हो।
  • विकास के कार्य जिला परिषद् को दिए जाएँ। राज्य में पंचायती राज्य मन्त्रालय का गठन किया जाए तथा एक पंचायत मन्त्री की नियुक्ति की जाए।
  • अनुसूचित जाति (scheduled caste) और अनुसूचित जनजाति (scheduled tribe) के लिए जनसंख्या (Population) के आधार पर सीटों का आरक्षण (Reservation) हो ।
  • देश की राजनीतिक अस्थिरता (instability) के कारण अशोक मेहता समिति (Ashok Mehta Committee) की सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सका।

G V K Rao Committee जी वी के राव समिति (1985-86), 

योजना आयोग ने G V K Rao की अध्यक्षता में वर्ष 1985 में ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए प्रशासनिक प्रबन्ध विषय पर एक समिति का गठन किया तथा समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1986 में सरकार को सौंप दी और कहा कि लोकतन्त्रीकरण (democratization) की जगह विकासात्मक प्रशासन पर नौकरशाही की छाया पड़ने से पंचायती राज संस्थाएँ निर्बल हुई हैं तथा उनकी स्थिति बिना जड़ की घास की हो गई है। इस समिति ने निम्न सिफारिशें प्रस्तुत की

  • विकेन्द्रीकरण (decentralization) की प्रक्रिया में जिला परिषद् की सशक्त भूमिका होनी चाहिए। विकास कार्यक्रमों का पर्यवेक्षण, नियोजन, कार्यान्वयन जिला या उसके निचले स्तर की पंचायती संस्थाओं द्वारा किया जाना चाहिए।
  • जिला विकास आयुक्त (District Development Commissioner) के पद का सृजन किया जाए तथा उसे जिले के विकास कार्यों का प्रभारी बनाया जाए।
  • नियमित चुनाव कराने का प्रावधान हो।
  • राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, जिला स्तर पर जिला विकास परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा ग्राम स्तर पर ग्रामसभा के गठन की सिफारिश की।

समिति ने विकेन्द्रीकरण (The committee has decentralized) के तहत नियोजन एवं विकास कार्य में पंचायतों की भूमिका को बल प्रदान किया। इसी के तहत जी वी के राव समिति की सिफारिशें, दाँतवाला समिति 1978, जोकि ब्लॉक नियोजन से सम्बन्धित थी तथा वर्ष 1984 में जिला स्तर के नियोजन से सम्बन्धित हनुमन्त राव समिति की रिपोर्टों से भिन्न हैं, अतः दाँतवाला और हनुमन्त राव समिति ने सिफारिश की कि विकेन्द्रीकृत नियोजन के कार्यों को जिला स्तर पर ही किया जाए तथा हनुमन्त राव समिति ने मन्त्री या जिला कलेक्टर के अधीन जिला नियोजन संगठन की सिफारिश की।

एल एम सिंघवी समिति, 1986

वर्ष 1986 में राजीव गाँधी सरकार द्वारा रीवाइटलाइजेशन ऑफ पंचायती राज इंस्टीट्यूशन फॉर डेमोक्रेसी एण्ड डेवलपमेण्ट विषय पर एल एम सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने निम्न सिफारिशें सरकार को सौंपी

  • पंचायती राज्य संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा (Constitutional Status) दिया जाए और संविधान में इसके लिए अलग अध्याय को जोड़ा जाए तथा नियमित चुनाव (election) के लिए संविधान में प्रावधान किया जाए।
  • कई गाँवों को मिलाकर न्याय (justice) पंचायतों का गठन किया जाए।
  • पंचायतों के लिए कई गाँवों का पुनर्गठन (reorganization) किया जाए। 
  • पंचायतों को वित्तीय संसाधन (financial resources) उपलब्ध कराए जाएँ।
  • पंचायतों से जुड़े मामलों को हल करने के लिए राज्य में न्यायिक अधिकरण (Judicial Tribunal) की स्थापना की जाए।

पी के थुंगन समिति, 1989

इस समिति का गठन वर्ष 1989 में पंचायती राज संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया तथा इस समिति ने भी पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिए जाने कीन सिफारिश की।

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