स्थानीय स्वशासन (CG Panchayti Raj ):- पंचायती राज या स्थानीय स्वशासन का तात्पर्य ऐसे शासन से है, जिसमें राज्य या प्रान्त को छोटे-छोटे प्रशासकीय खण्डों एवं उप-खण्डों में विभाजित कर दिया जाता है, इसके अन्तर्गत जनता अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करती हैं, जिससे उनमें राजनीतिक चेतना का विकास होता है। भारत में स्थानीय स्वशासन के अन्तर्गत पंचायती राज संस्थाएँ तथा नगरीय निकाय/नगरपालिकाएँ स्थापित की गई हैं।
स्थानीय स्वशासन से आशय
स्थानीय स्वशासन का तात्पर्य स्थानीय लोगों की भागीदारी द्वारा स्थानीय शासन की व्यवस्था सुचारु रूप से करना है। लोकतान्त्रिक देशों की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि निर्णायक कार्यों में कैसे जनता की सहभागिता को बढ़ाया जाए, जिससे वे अपने विकास का रास्ता खुद तय कर सके। इसी उद्देश्य को बढ़ावा देने के लिए सत्ता के विकेन्द्रीकरण (Decentralisation) की बात कही जाती है। गाँव में व्याप्त समस्याओं को केन्द्रीय स्तर पर बैठकर हल नहीं किया जा सकता। इन समस्याओं को विकेन्द्रीकरण के माध्यम से ही हल किया जा सकता है। लेकिन यह तभी सम्भव होगा जब स्थानीय संस्थाएँ (local bodies) प्रारम्भिक स्तर तक
विद्यमान हों।
स्थानीय स्वशासन के जनक
भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक लॉर्ड रिपन (1880-84 ई.) को माना जाता है। इन्होंने 1882 ई. में एक प्रस्ताव पारित करके स्थानीय शासन (Local Government)के लिए निम्न प्रावधान किए।
● स्थानीय बोर्ड को कार्य करने तथा आय के साधन दिए गए।
● जिला बोर्डों का गठन किया गया।
● सरकारी हस्तक्षेप की अनुमति कार्यों की समीक्षा करने तक ही सीमित कर दी गई।
बाद में भारत शासन अधिनियम (GOVERNMENT OF INDIA ACT), 1919 के द्वारा स्थानीय स्वशासन को एक हस्तान्तरित विषय (Transferred Subject) में परिवर्तित कर दिया गया और इन संस्थाओं को अपने विकास कार्य करने की अनुमति दे दी गई तथा भारत शासन अधिनियम (GOVERNMENT OF INDIA ACT), 1935 के द्वारा उन संस्थाओं को और सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया गया।
भारत में स्थानीय स्वशासन की पृष्ठभूमि
गाँधीजी ग्राम स्वराज के पक्षधर थे, अतः संविधान सभा ने राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों (Directive Principles of State Policy) के तहत अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतों का प्रावधान करके राज्यों को इनका गठन करने की शक्ति प्रदान कर दी। संविधान के प्रथम प्रारूप में पंचायती राज व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं था परन्तु गाँधी जी के दबाव के परिणामस्वरूप इसे संविधान के अनुच्छेद 40 में शामिल कर लिया गया। औपचारिक रूप से स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पंचायती राज व्यवस्था के लिए प्रयास आरम्भ हुए। उसके लिए केन्द्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मन्त्रालय (ministry of community development) का गठन किया गया।
एस के डे को इस विभाग का मन्त्री बनाया गया, जिसके तहत पहली बार 2 अक्टूबर, 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programme) जनता की सहभागिता के उद्देश्य को लेकर प्रारम्भ किया गया, लेकिन यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहा। अंत: एक साल बाद 2 अक्टूबर, 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया, जो सफल न हो सका।
स्थानीय स्वशासन की विशेषताएँ
- स्थानीय स्वशासन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-
- जनता अपनी समस्याओं को स्वयं हल कर सकती है।
- कार्यों के बँटवारे से केन्द्र व राज्य स्तर (state level) की सरकारों का बोझ कम होगा।
- राजनीतिक चेतना का विकास होता है।
- सत्ता के विकेन्द्रीकरण (decentralization) से जनकल्याणकारी (Public Welfare) कार्यों को आसानी से पूरा किया जा सकता है।
- देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था (democratic system) को मजबूती मिलती है।
- जनभागीदारी बढ़ने से ग्रामीण स्तर (village level) पर समन्वयता बढ़ती है।
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