छत्तीसगढ़ में (CG Panchayti) स्थानीय स्वशासन

प्राचीन छत्तीसगढ़ में पंचायती राज-व्यवस्था के लिए पंच प्रधान की व्यवस्था सर्वप्रथम 1224 ई. में लागू की गई थी। पंच प्रधान या पंचों की महापंचायत का प्रथम सन्दर्भ चक्रकोट (प्राचीन बस्तर) के नृपति जयसिंह देव के उक्त ‘सोनारपाल अभिलेख’ में मिलता है। भूमि सम्बन्धी सभी विवादों में ‘पंच-प्रधान' का निर्णय अन्तिम होता था। गाँव की सभी प्रकार की सूचनाएँ ‘ग्राम नायक’ के माध्यम से 'पंच प्रधान' को मिलती थीं। तेरहवीं शताब्दी में अद्यावधि पर्यन्त बस्तर में उक्त व्यवस्था जीवित है—जाति पंचायत के रूप में। गोण्डी बोली में जाति-पंचायत को 'बुमकाल' कहा जाता है, जिसका तात्पर्य है कि प्रत्येक ‘बूम' (ग्राम भूमि) की अपनी स्वतन्त्र सत्ता थी और उसकी सीमा 'कल' अर्थात् गाड़े गए पत्थर बनाते थे। 

CG Panchayti

बस्तर ही नहीं समूचे राज्य में गाँवों को स्वायत्तता प्राप्त थी तथा वे पंचायतों द्वारा शासित थे, जो स्वशासित इकाइयाँ थीं। प्रत्येक गाँव की अपनी परिषद् अथवा सभा होती थी, जिसमें गाँव के बड़े-बुजुर्ग सार्वजनिक प्रश्नों पर चर्चा तथा विचार करने के लिए एकत्र होते थे। गाँव के पाँच बुजुर्ग (पंच प्रधान) लोगों द्वारा दिया गया निर्णय उतना ही पवित्र तथा मान्य था, जितना कि आज वैधिक कल्पना द्वारा न्यायालय के निर्णयों को माना जाता है। इन पंचायतों को पूर्व प्रशासनिक तथा न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त थीं।

राज्य के जो ग्राम समुदाय कलचुरि-चालुक्य काल में उन्नत व्यवस्था में थे, उन्हें मराठा-शासनकाल में आघात लगा तथा इसके पश्चात् ब्रिटिश शासन के अधीन वे समाप्त हो गए।


1861 ई. में जब ‘मध्यप्रान्त' की पृथक् प्रान्त के रूप में स्थापना हुई, तब ग्रामीण और नगर क्षेत्र के प्रशासन की नई शुरुआत हुई। तदनुसार मध्यप्रान्त में प्रथम नगरपालिका अधिनियम 1873 ई. में पारित किया गया और 1883 ई. तक यह प्रवर्तन में रहा। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद मध्यप्रान्त को मध्य प्रदेश नाम दिया गया, जिसकी राजधानी 'भोपाल' थी। 1 नवम्बर, 2000 को छत्तीसगढ़ एक नवीन राज्य बना।

छत्तीसगढ़ राज्य में पंचायती राज व्यवस्था का आधार मध्य प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 है। मध्य प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 को और अधिक जन सापेक्ष बनाने के लिए समय-समय पर इसमें संशोधन किए गए हैं। इसमें पहला संशोधन 27 दिसम्बर, 1994 को हुआ। इस संशोधन के प्रमुख बिन्दु थे— सहयोजना प्रथा की समाप्ति, ग्राम सभा की त्रैमासिक बैठक तथा ग्राम सभा की सलाह। अनुशंसा को बाध्यकारी बनाना। दूसरा संशोधन 23 दिसम्बर, 1994 को किया गया। इसके अनुसार जनपद तथा जिला पंचायतों को उनकी स्थायी समितियों की संख्या एवं विषय परिवर्तन के अधिकार दिए गए। साथ ही जिला एवं जनपद पंचायत के उपाध्यक्षों को शिक्षा समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया। तीसरा संशोधन 19 दिसम्बर, 1995 को हुआ। तद्नुसार ग्राम सभा की बैठक को न बुलवाने वाले सरपंच को निरर्हित किए जाने, विधायकों तथा सांसदों को सभी स्थायी समितियों के साथ-साथ सामान्य प्रशासन समिति में पदेन सदस्य बनाने एवं स्थायी समिति के सभापति एवं चुनाव सम्बन्धी संशोधन किए गए। इसके बाद 28 दिसम्बर, 1996 को एक और संशोधन किया गया। इस संशोधन का लक्ष्य आरक्षण व्यवस्था को अधिक तर्कसंगत बनाना, पारदर्शिता लाना तथा इन संस्थाओं को आर्थिक स्वावलम्बन प्रदान करना था। इसके अनुसार एक तिहाई महिलाओं की उपस्थिति की अनिवार्यता, सरपंच और उप-सरपंच के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की विधि मान्यता को चुनौती में सुनवाई के पर्याप्त अवसर, त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को सांसदों एवं विधायकों का मार्गदर्शन, भू-राजस्व या लगान पर उपकर द्वारा 'पंचायत निधि' निर्माण आदि के प्रावधान किए गए हैं।

वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में 27 जिला पंचायतें, 146 जनपद पंचायतें और 9734 ग्राम पंचायतें हैं, जो निम्न कार्य कर रही हैं:-

छत्तीसगढ़ पंचायती राज अधिनियम


अविभाजित मध्य प्रदेश, देश का प्रथम राज्य था जिसने 73वें संविधान संशोधन में किए गए लगभग समस्त प्रावधानों को यथावत लागू किया तथा मध्यप्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993 बनाया। यह अधिनियम 30.12.1993 को विधानसभा में पारित हुआ। 24 जनवरी, 1994 को महामहिम राज्यपाल महोदय का अनुमोदन प्राप्त हुआ एवं 25 जनवरी, 1994 को राजपत्र में प्रकाशित होकर प्रदेश अधिनियम को अक्टूबर, 2000 तक के संशोधनों के साथ छत्तीसगढ़ में राजपत्र (असाधारण) क्रमांक 134 दिनांक 18.06.2001 द्वारा यथावत अनुकूलन किया गया। नवम्बर, 2000 के बाद मध्यप्रदेश के पंचायत राज अधिनियम में जो भी संशोधन हुए हैं वे अब छत्तीसगढ़ राज्य में लागू नहीं होंगे। अब छत्तीसगढ़ राज्य में जो भी संशोधन होंगे वही लागू होंगे। 

छत्तीसगढ़ पंचायती राज अधिनियम परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,

1. 'खण्ड' से अभिप्रेत है, किसी जिले का ऐसा क्षेत्र जिसे राज्य सरकार
धारा 10 की उपधारा (2) के अधीन खण्ड घोषित करे।

2. 'सहकारी सोसाइटी' का वही अर्थ होगा जो उसे छत्तीसगढ़ सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1960 (क्रमांक 17 1961 ई.) में परिभाषित किया

गया है।


3. 'जिला' से अभिप्रेत है राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए जिले के रूप में अधिसूचित कोई जिला, इसके अन्तर्गत इस प्रकार अधिसूचित एक या अधिक राजस्व जिले आते हैं।


4. 'निर्वाचन' से अभिप्रेत है पंचायत के किसी स्थान या स्थानों को भरने के लिए निर्वाचन और उसके अन्तर्गत है ग्राम पंचायत के सरपंच का निर्वाचन।


5. 'निर्वाचन कार्यवाहियाँ' से अभिप्रेत है निर्वाचन के लिए सूचना जारी होने से प्रारम्भ होने वाली और ऐसे निर्वाचन का परिणाम घोषित किए जाने के साथ समाप्त होने वाली कार्यवाहियाँ।


6. 'कारखाना' का वही अर्थ होगा जो उसे कारखाना अधिनियम, 1948 में दिया गया है।


7. 'ग्राम पंचायत' से अभिप्रेत है धारा 10 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित कोई ग्राम पंचायत ।


8. 'ग्राम सभा' से अभिप्रेत है ग्राम पंचायत क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी राजस्व ग्राम या वन ग्राम से सम्बन्धित निर्वाचक नामावलियों में रजिस्ट्रीकृत व्यक्तियों से मिलकर बनने वाला कोई निकाय ।


9. ‘जनपद पंचायत’ से अभिप्रेत है, धारा 10 की उपधारा (2) के अधीन स्थापित जनपद पंचायत।


10. 'स्थानीय प्राधिकारी' का वही अर्थ होगा, जो उसे छत्तीसगढ़ साधारण खण्ड अधिनियम, 1957 (क्रमांक 3 1958 ई.) में दिया गया है।


11. 'सदस्य' से अभिप्रेत है यथास्थिति किसी ग्राम पंचायत का कोई पंच, किसी जनपद पंचायत का कोई सदस्य या किसी जिला पंचायत का कोई सदस्य।

12. 'घृणोत्पादक पदार्थ' के अन्तर्गत है पशुओं के शव, गोबर, कचरा, मल मूत्रादि या सड़े हुए पदार्थ, या किसी भी प्रकार की गंदगी।


13. 'पदधारी' से अभिप्रेत है, यथास्थिति किसी ग्राम पंचायत का कोई पंच, सरपंच या उपसरपंच, किसी जनपद पंचायत का कोई सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या किसी जिला पंचायत का कोई सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष।


14. 'अन्य पिछड़ा वर्ग' से अभिप्रेत है राज्य सरकार द्वारा यथा अधिसूचित पिछड़ा वर्ग के व्यक्तियों का प्रवर्ग।


15. 'स्वामी' जब उसका प्रयोग किसी भूमि या भवन के प्रति निर्देश से किया गया है, के अन्तर्गत वह व्यक्ति है जो उस भूमि या भवन का या उस भूमि या भवन के किसी भाग का भाड़ा चाहे अपने स्वयं के लेखे या किसी व्यक्ति या सोसाइटी के अभिकर्ता या न्यासी के रूप में अथवा प्रापक के रूप में प्राप्त करता है।


16. 'पंच' से अभिप्रेत है, ग्राम पंचायत का कोई पंच।


17. 'पंचायत' पंचायत से अभिप्रेत है यथास्थिति कोई ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत या जिला पंचायत।


18. 'पंचायत क्षेत्र' से अभिप्रेत है इस अधिनियम के अधीन स्थापित किसी पंचायत का प्रादेशिक क्षेत्र।


19. 'जनसंख्या' से अभिप्रेत है, अन्तिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित किए जा चुके हैं।


20. 'अध्यक्ष' और 'उपाध्यक्ष' से अभिप्रेत है, यथास्थिति किसी जनपद पंचायत या जिला पंचायत का क्रमश: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष।

21. इस अधिनियम के किसी उपबन्ध में 'वित्त प्राधिकारी' से अभिप्रेत है ऐसा अधिकारी या प्राधिकारी जिसे राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, उस उपबन्ध के अधीन विहित प्राधिकारी के कृत्यों का निर्वहन करने का निर्देश दे। 


22. 'सार्वजनिक बाजार' या 'सार्वजनिक मेला' से अभिप्रेत है, धारा 58 के परन्तुक के अधीन अधिसूचित यथास्थिति कोई बाजार या मेला।


23. 'सार्वजनिक स्थान' से अभिप्रेत है, कोई स्थान या संरचना जो निजी सम्पत्ति नहीं है और जो जनता के उपयोग के लिए खुली है चाहे ऐसा स्थान, भवन या संरचना पंचायत में निहित है अथवा नहीं है।


24. 'सार्वजनिक सड़क' से अभिप्रेत है, कोई ऐसी सड़क, पगडण्डी, मार्ग चौक, पटरी या रास्ता जो जनता द्वारा, चाहे स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से उपयोग में लाया जाता है।


25. 'सरपंच' और 'उपसरपंच' से अभिप्रेत है, किसी ग्राम पंचायत का यथास्थिति क्रमशः सरपंच और उपसरपंच। 


26. क 'अनुसूचित क्षेत्र से अभिप्रेत है भारत के संविधान के अनुच्छेद 244 के खण्ड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्र।


27. 'स्थायी समिति' से अभिप्रेत है, इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन गठित यथास्थिति, किसी ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत या जिला पंचायत की स्थायी समिति।


28. 'राज्य निर्वाचन आयोग' से अभिप्रेत है, राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 243 ट (1) के अधीन गठित राज्य निर्वाचन आयोग।


29. 'कर' के अन्तर्गत है, इस अधिनियम के अधीन उद्ग्रहणीय कोई कर, उपकर रेट या फीस।


30. 'ग्राम' से अभिप्रेत है, कोई ऐसा ग्राम जिसे राज्यपाल द्वारा लोक अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया है और उसके अन्तर्गत है इस प्रकार विनिर्दिष्ट किए गए ग्रामों का समूह स्पष्टीकरण शब्द ग्राम में सम्मिलित है, राजस्व ग्राम तथा वन ग्राम।


31. 'जिला पंचायत' से अभिप्रेत है, धारा 10 की उपधारा (3) के अधीन स्थापित जिला पंचायत।


छत्तीसगढ़ पंचायती राज अधिनियम के मुख्य प्रावधान


पंचायत राज अधिनियम का मुख्य उद्देश्य स्थानीय स्वशासन एवं विकास सम्बन्धी कार्यों को करने में पंचायती राज संस्थाओं की भागीदारी प्रभावपूर्ण बनाए जाने के उद्देश्य से पंचायत राज अधिनियम, 1993 (क्रमांक 1 1994 ई.) लाया गया। इसमें पंचायतों की स्थापना से सम्बन्धित विधियों को संकलित किया गया है।


  • जिला स्तर- जिला पंचायत 
  • विकासखण्ड स्तर- जनपद पंचायत
  • ग्राम स्तर- ग्राम पंचायत
  • ग्राम सभा


राज्य सरकार की विधायिनी शक्तियाँ :- छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 43 तथा 95 में राज्य सरकार को विधायिनी शक्तियाँ प्रत्यायोजित की गई, जिसके द्वारा राज्य सरकार विभिन्न पंचायतों के गठन, उसके कार्य संचालन की विधि, शक्तियों के उपयोग, सम्पत्ति, स्थापना, आय-व्यय, लेखे-जोखे, कराधान, निरीक्षण आदि से सम्बन्धित प्रक्रियाओं का निर्धारण करेगी।


ग्राम की घोषणा

1. महामहिम राज्यपाल के द्वारा अधिसूचना जारी कर ग्राम या ग्राम समूह के इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए ग्राम के रूप में घोषित किया जाएगा।

2. प्रत्येक खण्ड के ग्रामों को वार्डों में बाँटा जाएगा तथा प्रत्येक वार्ड की जनसंख्या, लगभग बराबर रखी जाएगी।


3. प्रत्येक ग्राम के लिए ग्राम सभा होगी। इस ग्राम सभा का सदस्य हर वह व्यक्ति होगा, जिसका नाम इस ग्राम की मतदाता सूची में है।


4. ग्राम पंचायतों के कार्यों की समीक्षा/सामाजिक मूल्यांकन, सलाह देने, आय-व्यय को जानने जैसे अधिकार ग्राम सभा को देकर उन्हें सशक्त बनाया गया।


5. ग्राम पंचायत के प्रत्येक वार्ड से एक पंच होगा। पंच एक से अधिक वार्डों या निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा। प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरपंच तथा एक उपसरपंच होगा और जनपद तथा जिला पंचायत के स्तर पर अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के पद होंगे।


6. अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के विस्तार हेतु समुदायगत् संसाधनों, रीति-रिवाजों, सार्वजनिक एवं धार्मिक प्रथाओं एवं परम्परागत प्रबन्ध प्रथाओं के अनुरूप नियम बनाने का प्रावधान है।

त्रिस्तरीय पंचायतों की संरचना:- अधिनियम में तीन स्तरों पर पंचायतों का गठन किए जाने का प्रावधान है अर्थात ग्राम के लिए ग्राम पंचायत, खण्ड के लिए जनपद पंचायत और जिले के लिए जिला पंचायत का गठन किया जाएगा। (धारा - 8)


चुनाव आयोग का गठन:- पंचायतों के चुनाव निष्पक्ष ढंग से कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग का गठन किया जाएगा। (धारा-42)

 

पदों का आरक्षण


1. खण्ड के भीतर ग्राम पंचायतों में अनुसूचित जनजाति तथा अनुसूचित जातियों की कुछ जनसंख्या में जो अनुपात है उसी अनुपात में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जातियों के लिए ग्राम पंचायत के सरपंचों के पद आरक्षित रखे जाएँगे (धारा 17 दो)


2. जहाँ खण्ड में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सम्मिलित जनसंख्या आधे से कम है वहाँ खण्ड के भीतर ग्राम पंचायतों में सरपंच के कुल पदों के 25% स्थान अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किए जाएँगे। (धारा 17 दो-2) प्रत्येक ग्राम पंचायत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित किए जाएँगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या के अनुपात, उस ग्राम पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के साथ यथासाध्य वहीं होगा जो उस ग्राम पंचायत क्षेत्र के लिए विहित रीति में चक्रानुक्रम में आवण्टित

किए जा सकेंगे। (परन्तु पंचायत की क्रमवर्ती दो सामान्य निर्वाचन की अवधि एक चक्रानुक्रम में होगी।)


आरक्षण प्रत्येक ग्राम पंचायत में


(क) अनुसूचित जातियों

(ख) अनुसूचित जनजातियों, और

(ग) अन्य पिछड़े क्षेत्रों वर्गों के लिए


उनके जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था है।


● 50% स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित है, जो चक्रानुक्रम में लॉटरी

पद्धति से आवण्टित किए जाएँगे।


● पंचायत के लगातार दो पंचवर्षीय चुनाव में आरक्षण एक समान होगा।


3. किसी ग्राम में जहाँ अनुसूचित जातियों, जनजातियों के स्थान 50% या उससे कम आरक्षित किए गए है, वहाँ 25% स्थान अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किए जाएंगे और उसे वार्ड विहित रीति में चक्रानुसार कलेक्टर द्वारा आवण्टित किए जाएँगे।


4. खण्ड के भीतर सरपंचो के कुछ स्थानों की संख्या से कम-से-कम 50% स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं।


5. ग्राम पंचायत का सरपंच यदि अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति, या अन्य पिछड़े वर्ग का नहीं है तो उप सरपंच अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों अथवा पिछड़े वर्गों के पंचों में से निर्वाचित किया जाएगा। (धारा -17 - छ:)


6. प्रत्येक ग्राम पंचायत में उप सरपंच तथा जनपद तथा जिला पंचायत उपाध्यक्ष का पद होगा।


7. ग्राम पंचायत के पंच सरपंच, तथा जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत के सदस्यों का चुनाव सीधे मतदान के द्वारा होगा। जनपद तथा जिला पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों में से किया जाएगा।


8. यदि सरपंच या उपसरपंच लोकसभा, विधानसभा या राज्य सभा का सदस्य अथवा सहकारी समिति का सभापति या उप सभापति हो जाता है, तो वह सरपंच अथवा उप सरपंच के पद पर नहीं रह सकेगा।


9. जनपद एवं जिला पंचायतों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित किए जाएँगे। इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात उस जनपद या जिला पंचायत में सीधे निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या में वही होगा जो उस जनपद या जिला पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति और जाति की संख्या का उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या के साथ है।


10. जिन जनपद पंचायतों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या आधे या आधे से कम है वहाँ अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 25% स्थान आरक्षित किए जाएँगे।


11. जनपद पंचायत के अध्यक्ष का पद अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए उसी अनुपात में आरक्षित किया जाएगा, जो कि कुल अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जाति की जनसंख्या तथा कुल जनसंख्या के बीच है। इन जनपद अध्यक्ष के कुल पदों में से 50% महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाएँगे।


12. पदाधिकारी के लिए निर्योग्यता कोई व्यक्ति किसी पंचायत के पदधारी के रूप में निर्वाचन के लिए एक से अधिक वार्डों या निर्वाचन क्षेत्र से खड़ा होने के लिए पात्र नहीं होगा।

पदाधिकारी कौन नहीं हो सकते?


● पंचायत के लाभ के पद पर कार्य करने वाला।

● सरकारी नौकरी/कम्पनी से निकाला गया।

● जिसके पास दूसरे देश की नागरिकता हो।

●जिसे विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया हो।

● जो साक्षर न हो (यह शर्त 30 साल से अधिक उम्र वाले व्यक्ति के लिए लागू नहीं होगी) ।

● जिसने अपने घर में निर्वाचित हो जाने के एक साल बाद भी शौचालय न बनाया हो।

● पंचायत के वैतनिक वकील के रूप में कार्य करता हो।



13. कोई भी व्यक्ति निम्न स्थिति में पंचायत के पदधारी के रूप में निर्वाचन में खड़ा होने के लिए पात्र नहीं होगा धारा (36)

  • जो साक्षर (30 वर्ष से कम आयु के) नहीं होने पर,
  • जिसके निवास परिसर में निर्वाचित होने के एक वर्ष बाद भी जलवहित शौचालय नहीं होने पर,
  • पंचायत के किसी प्रकार की देनदारी (बकाया) हो, उससे मांग की जाने के बाद तीस दिन के भीतर वापस जमा नहीं करने पर,
  • जिसने किसी पंचायत अथवा शासकीय भूमि या भवन पर अतिक्रमण किया हो।


पंचायत


ग्राम पंचायत जनपद तथा जिला पंचायत के निर्वाचन का प्रकाशन होने के बाद प्रकाशन की तारीख से 30 दिन की अवधि के अन्दर इनकी पहली बैठक आयोजित की जाएगी। वह बैठक विहित अधिकारी के द्वारा बुलाई जाएगी अर्थात् क्रमश: सचिव, ग्राम पंचायत, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत एवं जनपद पंचायत द्वारा बुलाई जाएगी। (धारा 20, 27, 34 ) प्रत्येक पंचायत अपनी पहली बैठक की तारीख से पाँच वर्ष तक कार्य करेगी इससे अधिक नहीं यदि इसे समय से पहले कानून विघटित कर दिया जाता है तो शेष अवधि के लिए छः माह के भीतर चुनाव कराया जाना आवश्यक होगा। (धारा 9 ख)


कार्यकाल


पंचायत की पहली बैठक से ही उनका कार्यकाल शुरू हो जाता है। जो 5 साल तक रहता है।

नवनिर्वाचित सरपंच पहली बैठक की तारीख से ही पद का कार्यभार ग्रहण कर लिया समझा जाता है।


पंचायतों के कृत्य का निर्धारण ग्राम पंचायत जनपद पंचायत तथा जिला पंचायतों के द्वारा किए जाने वाले कार्यों को स्पष्ट रूप से विभाजित किया है। प्रत्येक पंचायत सौंपें गए कार्यों को करेगी। (धारा – 49, 50, 52)


पंचायत की शक्तियाँ पंचायतों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएँ और सुरक्षा के मामलों में अतिरिक्त शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। इसके अलावा भवनों के निर्माण पर नियन्त्रण एवं अनुमति, सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण को खत्म करने, मार्गों का नामकरण करने, भवनों पर क्रमांक डालने बाजारों तथा मेलों का नियमन करने की शक्तियाँ दी गई हैं। (धारा 45 से 60 तक)


पंचायत के पदाधिकारी कौन हो सकते हैं?


  • वह व्यक्ति जिसका नाम मतदाता सूची में दर्ज हो ।
  • उम्र कम-से-कम 21 साल हो।
  • जो सरकारी नौकरी नहीं करता हो।
  • पटेल के पद को छोड़कर अन्य लाभ के पद पर न हो।
  • जो मानसिक रूप से बीमार न हो।
  • जिसको पंचायत की कोई भी राशि देना बाकी न हो।
  • किसी भी जगह पर अतिक्रमण न किया हो।
  • नशीली चीजों से सम्बन्धित अपराध का दोषी न हो।


पंचायत में सचिव तथा मुख्य कार्यपालन:- अधिकारी की नियुक्ति पंचायत के तीनों स्तरों पर पंचायत के कार्यों में सहयोग एवं क्रियान्वयन हेतु ग्राम पंचायत या

ग्राम पंचायतों के समूह के लिए सचिव, जनपद व जिले के लिए मुख्य कार्यपालन अधिकारी, नियुक्ति किए जाएँगे। इन्हें वे कार्य करने होंगे जो नियम के अनुसार इन्हे सौंपे जाएँगे। (धारा-69)


कराधान एवं दावों को वसूली करने की शक्ति:- पंचायत के स्वयं के वित्तीय स्रोतों को बढ़ाने के उद्देश्य से पंचायत स्तर पर कर लगाने की शक्ति दी गई है, जिसका उल्लेख अधिनियम की अनूसूची 1, 2 और 3 में दिया गया है।

पंचायतों के कार्य-कलापों की निरीक्षण एवं जाँच:-  पंचायतों की कार्यवाहियों को निरीक्षण करने के लिए राज्य सरकार अधिकारों को अधिकृत कर सकेगा। इसी प्रकार राज्य शासन समय-समय पर पंचायतों की जाँच करा सकती है। (धारा-88)


पंचायत के किसी धन या उसकी सम्पत्ति की हानि, दुर्व्यय, दुरूपयोग:- पंचायत का प्रत्येक पंच, सदस्य, पदाधिकारी, अधिकारी या सेवक पंचायत के किसी धन या उसकी सम्पत्ति की हानि, दुर्व्यय, दुरूपयोग उनके कारण हुई है, के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे।


अविश्वास प्रस्ताव:- किसी सरपंच तथा उप सरपंच, जनपद तथा जिले के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष जैसी भी स्थिति हो, उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम तीन चौथाई बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने पर अपने पद पर नहीं रह जाएगा। इसमें शर्त यह है कि यह तीन चौथाई बहुमत तत्समय पंचायत का गठन करने वाले पंचों/सदस्यों की कुल संख्या के दो तिहाई से अधिक होना चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव पंचायत गठन के एक वर्ष तक तथा अवधि समाप्त होने के अन्तिम 6 माह में नहीं लाया जा सकेगा।


पदाधिकारियों का कार्यभार ग्रहण:-  निर्वाचित सरपंच अथवा अध्यक्ष प्रथम बैठक की तारीख से अपने पद का कार्यभार ग्रहण कर लिया माना जाएगा। बर्हिगामी, सरपंच, जनपद अध्यक्ष जिला पंचायत अध्यक्ष के द्वारा अपना कार्यभार निर्वाचित सरपंच अथवा अध्यक्ष पद ग्रहण करने की तिथि पर तत्काल सौप देगा। (धारा-18)


पंचायत पदाधारियों का एक से अधिक पद धारण करने पर रोक:-  निर्वाचन से 15 दिन की अवधि में कोई व्यक्ति जो एक से अधिक पद पर निर्वाचित हो जाता है। एक पद पर बने रहने का अपना विकल्प देगा। यदि वह ऐसा विकल्प निर्धारित अवधि में नहीं देता है, अथवा यदि कोई व्यक्ति ग्राम पंचायत, जनपद या जिला पंचायत में से एक से अधिक पद/पदों को उसे छोड़ना पड़ेगा। (धारा-41)


1. जिला पंचायत का सदस्य।

2. जनपद पंचायत का सदस्य।

3. ग्राम पंचायत का सरपंच।

4. ग्राम पंचायत के पंच।


विविध सहायता कार्य:-  निर्धन व्यक्तियों की चिकित्सा एवं दाह-संस्कार में सहायता आदि भी पंचायतों को करना है।


निर्माण कार्य:- गाँवों में अतिक्रमण रोकना, भवनों का संख्याकरण, मार्गों का नामकरण, सड़कें, पुलिया एवं सार्वजनिक भवन बनाना तथा सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था भी पंचायत के कर्त्तव्य हैं।


शासकीय योजनाओं का क्रियान्वयन :- भूमि एवं कृषि-सुधार, पशु-पालन, डेयरी, मुर्गी-पालन, ईंधन, चारा उपलब्धि, गरीबी-उन्मूलन, पुस्तकालय एवं वाचनालय, प्रौढ़ एवं अनौपचारिक शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण तथा सांस्कृतिक सामाजिक आयोजन आदि कार्य भी पंचायतों के कर्त्तव्य क्षेत्र में आते हैं।


छत्तीसगढ़ में नगरीय स्वशासन


शहरी क्षेत्र के विकास में शहरी स्वायत्त संस्थाओं की विशिष्ट भूमिका है। ग्राम पंचायतों की तरह इनका उद्देश्य भी सत्ता का विकेन्द्रीकरण है। 74वें संविधान संशोधन के आधार पर यह तय किया गया है कि वृहत्तर नगरीय क्षेत्रों के नगर निगम, लघुतर नगरीय क्षेत्रों के नगरपालिका परिषद् व ऐसे संक्रमणशील क्षेत्रों में जो ग्रामीण से नगरीय क्षेत्रों में संक्रमणगत हों, नगर पंचायतें गठित हो जाएँगी। वर्तमान समय में राज्य में 10 नगर निगम (रायपुर, बिलासपुर कोरबा, दुर्ग, राजनांदगाँव, भिलाई, रायगढ़, अम्बिकापुर, जगदलपुर, चिरमिरी) हैं। तथा 32 नगरपालिका एवं 127 नगर पंचायतें हैं शहरी निकायों के लिए 5 वर्षीय चुनाव अनिवार्य रखा गया है। विघटन की स्थिति में 6 माह के भीतर चुनाव कराना आवश्यक होगा। प्रत्येक शहरी निकाय में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित करने तथा महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित रखने का प्रावधान है। राज्य निर्वाचन आयोग को शहरी निकायों के चुनाव सम्पन्न करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। शहरी निकायों को नगरीय योजना, भूमि आयोग का विनियमन, सड़कें, पुल, लोक स्वास्थ्य, अग्निशमन सेवाएँ, गन्दी बस्ती, सुधार पार्क, उद्यान, जन्म-मरण, सांख्यिकी, प्रकाश, पार्किंग आदि की व्यवस्था का कार्य सौंपा गया है।


स्थानीय स्वशासन विभाग


स्थानीय स्वशासन निकायों के संचालन, मार्गदर्शन व उन पर नियन्त्रण संचालनालय के कार्यों में गति लाने के लिए संचालक तथा उपसंचालकों को स्थानीय संस्थाओं के कुछ अधिकार प्रदान किए गए हैं।

निष्कर्ष

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