इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 का उपबन्ध किया गया है, जिसका नाम पंचायत रखा गया। पंचायत के लिए अनुच्छेद 243 से अनुच्छेद 243 (O) तक कई प्रावधान किए गए हैं तथा इनको सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए संविधान ने ग्यारहवीं अनुसूची (Eleventh Schedule) को जोड़ा है, जिसमें पंचायतों से
सम्बन्धित 29 विषयों का वर्णन किया गया है। इस अधिनियम के प्रभावी होने से संविधान में वर्णित राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों के अनुच्छेद 40 को व्यावहारिक रूप मिला है, जिससे गाँधीजी के ग्राम स्वराज का सपना साकार हुआ है और सत्ता के विकेन्द्रीकरण के द्वारा नागरिकों की भागीदारी बढ़ी है। यह राज्य के विषय का केन्द्रीय कानून है। यद्यपि स्थानीय शासन, संविधान की सातवीं सूची में वर्णित राज्य सूची (State List) का विषय है। फिर भी यह नियम ऐसे अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। यहाँ पर इनसे सम्बन्धित राज्यों को पर्याप्त विवेकाधीन शक्तियाँ (Discretionary_Power) गई दी हैं। अतः हम कह सकते हैं कि प्रतिनिधात्मक लोकतन्त्र (Representative Democracy) की जगह को भागीदारी आधारित लोकतन्त्र (Participatory Democracy) ने ले लिया है। इस अधिनियम ने राज्यों को कानून बनाने के लिए मार्गदर्शक का कार्य किया है। जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और अरुणाचल प्रदेश ने ऐसी विधि नहीं बनाई है तथा यह कानून नागालैण्ड, मेघालय और मिजोरम में जनजातीय परिषद् जैसी संस्था होने के कारण प्रभावी नहीं हो पाया है।
ग्रामसभा
संविधान के अनुच्छेद 243 (A) में ग्रामसभा का प्रावधान है, जोकि 200 या उससे अधिक सदस्यों से मिलकर बनती है। यह एक ऐसा निकाय है, जिसके तहत गाँव की मतदाता सूची में पंजीकृत सभी मतदाता ग्रामसभा के सदस्य होते हैं। ग्रामसभा की बैठक वर्ष में कम-से-कम दो बार होना आवश्यक है तथा कुछ विशेष परिस्थिति में भी बैठक बुलाई जा सकती है। ग्रामसभा की गणपूर्ति (Quorum) न होने से बैठक का संचालन नहीं हो सकता है। अत: कुल पंजीकृत मतदाता के 5वें भाग की उपस्थिति पर ही ग्रामसभा की बैठक हो सकती है।
ग्रामसभा की भूमिका
ग्रामसभा की भूमिका को निम्न प्रकार समझा जा सकता है:-
- सामुदायिक एकता व कार्यों में पारदर्शिता (transparency) लाना।
- लोगों की शासन (government ) में सहभागिता (participation) को बढ़ाना।
- जनकेन्द्रित वितरण प्रणाली को स्थापित करना।
- आम जनता की इच्छाओं को व्यक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना।
- सामाजिक (Social) रूप से वंचितों को निर्णयन में सहभागी बनाना।
- General SC/ST/OBC तथा महिलाओं को भागीदारी का अवसर प्रदान करना।
ग्रामसभा के कार्य
ग्रामसभा के निम्नलिखित कार्य हैं:-
- ग्रामीण विकास से सम्बन्धित कार्य।
- ग्रामीण विकास कार्यक्रमों (Rural Development Programme) की गाँवों की आवश्यकतानुसार प्राथमिकताएँ निर्धारित करना ।
- ग्राम पंचायत के कार्यों में पारदर्शिता (transparency) लाना।
- ग्रामीण समाज में सौहार्द व एकता (Harmony and Unity) बनाना।
- सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों (Community Welfare Programme) में सहयोग देना।
- आगामी वित्तीय वर्ष (next financial year) के लिए बजट पर विचार-विमर्श करना।
- वार्षिक लेखाओं (annual accounts) पर चर्चा कर विचार-विमर्श करना।
- ग्राम पंचायत के सदस्यों (members) से आय-व्यय का ब्यौरा माँगना।
ग्रामसभा की चुनौतियाँ
ग्रामसभा को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:-
- ग्रामसभा की बैठकों में गाँव के लोगों का उपस्थित नहीं होना ।
- अशिक्षा के कारण जागरूकता का अभाव।
- भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद एवं निष्क्रियता।
- महिलाओं की कम भागीदारी ।
- ग्रामसभा का क्षेत्र व्यापक होना।
- ग्राम पंचायतों का ग्रामसभा की इच्छा के विरुद्ध कार्य करना।
- पंचायतों का राजनीतिकरण होना।
- ग्रामसभा के सदस्यों को प्रशिक्षण न प्रदान करना।
ग्रामसभा : वर्तमान परिप्रेक्ष्य
आज ग्रामसभा राष्ट्रीय परिदृश्यों में भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। विशेष रूप से केन्द्र व राज्य द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों के क्रियान्वयन, निरीक्षण, मूल्यांकन आदि में; जैसे
- ग्रामसभा, ग्राम पंचायत के भीतर कार्य के क्रियान्वयन पर निगरानी रखेगी।
- ग्रामसभा, ग्राम पंचायत के अधीन प्रारम्भ की गई योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) करेगी।
- ग्राम पंचायत अपने सभी दस्तावेज; जैसे—बिल, वाउचर, माप, पुस्तिका आदि सामाजिक अंकेक्षण के लिए ग्रामसभा को सौंपेगी।
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