करमा नृत्य: करमा नृत्य की परम्परा भारत की कई जनजातियों में देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ में गोंड, बैगा, उरांव, कमार, कवर, पंडो, बिंझवार, बिरहोर आदि जनजातियों में करमा नृत्य किया जाता है। करमा नृत्य गीत ‘ कर्म देवता ' को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। करमा नृत्य गीतों में आदिवासियों के प्रेम, शृंगार के साथ प्रत्येक गतिविधियों की समसामयिक समग्र अभिव्यक्ति देखी जा सकती है। करमा मूलतः मुंडा और उरांव जनजाति का आदिम नृत्य है। करमा का विस्तार बस्तर, दन्तेवाड़ा, कांकेर, नारायणपुर एवं बीजापुर जिलों को छोड़कर राज्य के सभी जिलों तक है। करमा कहींपुरुषपरक और कहीं स्त्री पुरुष की समान भागीदारी का नृत्य है। जनजातियों के साथ साथ अन्य जातियों यथा-देवार, ढीमर, कुर्मी आदि में भी करमा नृत्य किया जाता है।
करमा सर्वांग सुन्दर नृत्य है। करमा का केन्द्रीय वाद्य ' मांदर' है। बिंझवार जनजाति के लोग वर्षा के प्रारम्भ एवं समाप्ति पर ' करमा नृत्य करते हैं, जबकि बैगा जनजाति के लोग कभी भी यह नृत्य कर लेते हैं। प्राय: यह विजयादशमी से प्रारंभ होकर अगली वर्षा ऋतु के आरम्भ तक चलता है। इसे खेतिहर संस्कृति के जीवन चक्र का हिस्सा कहा जा सकता है। इस नृत्य में प्राय: 8 पुरुष और 8 स्त्रियां भाग लेती हैं। युवक और युवतियां गोलार्ध बनाकर आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। एक दल गीत की कड़ी उठाता है जबकि दूसरा दल उसे दोहराता है। नृत्य में युवक-युवती आगे-पीछे चलने में एक-दूसरे के अंगूठे को छूने की कोशिश करते हैं।
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Chhattisgarh की नृत्य की जानकारी
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