पंथी नाचा: पंथी छत्तीसगढ़ की सतनामी जाति का पारम्परिक नृत्य है। इस नृत्य में लोग विशेष वेश-भूषा पहनते हैं। किसी तिथि-त्योहार पर सतनामी ' जैतखाम' की स्थापना करते हैं और परम्परागत ढंग से नाचते-गाते हैं। पंथी नृत्य की शुरूआत देवताओं की स्तुति से होती है। पंथी गीतों का प्रमुख विषय गुरु घासीदास का चरित्र होता है। इस नृत्य में आध्यात्मिक सन्देश के साथ मानव जीवन की महत्ता भी होती है। गुरु घासीदास के पंथ से पंथी नृत्य का नामकरण हुआ है पंथी नृत्य के मुख्य वाद्य मांदर एवं झांझ होते हैं। इस नृत्य में मुख्य नर्तक पहले गीत की कड़ी उठाता है जिसे अन्य नर्तक दोहराते हुए नाचते हैं। नृत्य का आरम्भ धीमी गति से होता है पर जैसे-जैसे गीत और मृदंग की लय तेज होती है, वैसे-वैसे पंथी नर्तकों की आंगिक चेष्टाएं तेज होती जाती है और समापन तीव्र गति के साथ चरम पर होता है। वस्तुतः यह अत्यंत द्रुत गति का नृत्य है। इसमें गति और लय का अदभुत समन्वय होता है। इस नृत्य की तेजी, नर्तकों की तेजी से बदलती मुद्राएं एवं देहगति दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देती है। इस नृत्य को देवदासबंजारे एवं उसके साथियों में देश-विदेश में काफी प्रतिष्ठित किया है।
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Chhattisgarh की नृत्य की जानकारी
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