छत्तीसगढ़ लोक सैला नृत्य की जानकारी

 

chhattisgarh lokh saila nitya ki jankari

सैला नृत्य:-
  सैला शुद्धतः जनजातीय नृत्य है। यह नृत्य आपसी प्रेम एवं भाई-चारे का प्रतीक है। ‘ सैला ' का अर्थ' शैल ' या' डण्डा ' होता है। शैल-शिखरों पर रहने वाले लोगों द्वारा किए जाने के कारण इसका नाम' शैला ' (सैला) पड़ा। यह नृत्य दशहरे में आरम्भ होकर सम्पूर्ण शरद ऋतु की रातों तक चलता है। इस नृत्य का आयोजन अपने आदिदेव को करने हेतु किया जाता है। नृत्य का आयोजन चांदनी रातों में किया जाता है। सैला नृत्य फसल कटने के बाद छत्तीसगढ़ के अधिकांश भाग में देखा जा सकता है। सैला नृत्य को ‘ डण्डा नाच' के नाम से भी जाना जाता है। यह नृत्य मूलतः पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसमें नर्तक सादी वेशभूषा में हाथों में डण्डा लेकर एवं पैरों में धुंधरू बांध कर गोल घेरा बनाकर नृत्य करते हैं। इस अवसर पर दोहे भी बोले जाते हैं। सैला नृत्य की परिणति सर्प नृत्य के रूप में होती है। मांदर इस नृत्य का मुख्य वाद्य होता है। ग्रामों को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने में सैला नृत्य की अहम भूमिका है। इस नृत्य का पुराना नाम ' सैला-रीना' है।

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Chhattisgarh  की नृत्य की जानकारी 

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